ना कह कर पछताया है मन
भावों की इस बेला में, तर्क कहांँ चल पाएगा
ना कह कर पछताया है मन कह कर भी पछताएगा
शब्दों की इस भीड़ भाड़ में
अर्थ कहांँ गुम जाते हैं
अर्थहीन इस क्रूर जगत में
मन क्यों मारे जाते हैं
ये बातें अब ना पूर्ण हुई तो
जग शब्द हीन हो जाएगा
पतझड़ के इस प्रांगण में
फिर प्रेम कहाँ पल पाएगा
ना कह कर पछताया है मन
कह कर भी पछताएगा
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