नया साल फिर आ रहा है,
मन को मेरे जला रहा है ।
दिसंबर फिर से जा रहा है,
एकाकीपन ह्रदय जला रहा है,
दिसंबर भी अब जा रहा है ।
जाने वाले चले तो गए, पर,
फिर याद क्यूं वो आ रहा है ।।
स्वप्न ह्रदय दुखा रहा है,
टूटा ख्वाब चुभता जा रहा है,
मुझे लगा कि भुला दिया,
वो आज भी याद आ रहा है ।।
नया साल फिर आ रहा है,
मन को मेरे जला रहा है,
अश्क बन नैनो पे छा रहा है,
नयन से नीर बहता जा रहा है,
वो साल अभी गुजरा नही,
ये साल फिर से आ रहा है,
हर पात_पात उदास है,
पतझड़ भी अब आ रहा है,
नव पल्लव आयेंगे लेकिन,
कुछ है जो छूटता जा रहा है ।।
नया साल फिर आ रहा है,
मन को मेरे जला रहा है ।।
एक दर्पण में छवि हमने बसाई,
अब वो भी दरकता जा रहा है ।
सारा जग सूना सूना लागे,
मन भी सकून न पा रहा है ।।
एक पुष्प खिला था फुलवारी में,
अब देखो गंध विसरा रहा है ।।
नया साल फिर आ रहा है,
मन को मेरे जला रहा है ।।
वो शीत सी थी सर्द हवाएं,
वो घुटी घूटी सी दिल की आहें ।
अंधेरे ने ढका था सारा अम्बर,
दिखती न थी कोई भी दिशाएं
लुटा था कारवां वहीं पे,मेरा,
हम पा कर भी सब कुछ खो आए,
ये दर्द बहुत ही सता रहा है ।
ये साल नया फिर आ रहा है,
मन को मेरे जला रहा है ।
दिसंबर फिर से जा रहा है
ये साल नया फिर आ रहा है ।।