नफ़रत के सिलसिले को हमें तोड़ना है तो

सनातन को मापने के तराज़ू निकल पड़े।

ये देखकर मेरे भी अब आंँसू निकल पड़े।

मासूम हाथ में तो थमा दे क़लम कोई,

ऐसा न हो कि हाथ में चाकू निकल पड़े।

पहरा लगा है इश्क़ पे जब भी यहांँ वहांँ,

तोड़कर बंदिशें सब मजनू निकल पड़े।

मुकद्दर में तेरे हो भले कुछ नहीं मगर,

निकलो तो ऐसे जैसे कि जुगनू निकल पड़े।

कौन कहता है ज़िन्दगी आसान है बहुत,

पसीने की जगह ज़बीं से ख़ूँ निकल पड़े।

नफ़रत के सिलसिले को हमें तोड़ना है तो,

मुस्लिम का हाथ थाम के हिन्दू निकल पड़े।

तुझे ढूंढता हूँ इस उम्मीद पे के बस,

होने को रूबरू कोई पहलू निकल पड़े।

मंदिर की बात आई तो भक्तों की टोली में,

करने को राम सेवा ये साधू निकल पड़े।

रो रो के भटकता जो ‘अकेला’ ही रह गया,

भाई को रोता देख के आँसू निकल पड़े।

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रचनाकार

Author

  • संतोष सिंह 'अकेला'

    नाम- संतोष सिंह "अकेला" जन्म तिथि- 01-10-1980 पिता का नाम- श्री चन्द्रिका सिंह माता का नाम- श्रीमती सुभावती सिंह शिक्षा- एम. ए., एम. जे., एल एल बी. सम्प्रति- वकालत साहित्य उपलब्धियां- तमाम समाचार पत्र तथा पत्र पत्रिकाओं में कविता और ग़ज़ल प्रकाशित । प्रकाशित पुस्तकें- 1- सदायें मेरे इश्क की (ग़ज़ल संग्रह) 2- मेरी पतवार (काव्य संग्रह) 3- जिन्दगी का सफर (ग़ज़ल संग्रह) 4- दरख्तों के पार (दोहा संग्रह ) 5- ख्यालों के पंक्षी (ग़ज़ल संग्रह)पांच साझा संग्रह में भी ग़ज़ल और कविता का प्रकाशन । स्थाई पता- ग्राम- सिलहटा मुण्डेरा पोस्ट- राजधानी जनपद - गोरखपुर 273202 वर्तमान पता -म.न. 19 इन्दिरा नगर पत्रालय- गोरखपुर विश्वविद्यालय जनपद- गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) 273009सम्पर्क - 9795201300, 8738928184 Copyright@संतोष सिंह 'अकेला'/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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