नदी
निर्मोह बहती रही
जीवन राग कहती रही
आया जो पाया वही
जग सुख-दुख का पुंज सही
जाना है मंजिल सही
मोह नहीं संदल सही
ठहराव जीवन का अंत
नदिया कहती रही
छाया हो या भंवर
कैसा भी हो डगर
मंजिल को जाना है
कहता है समंदर
निर्मोह बहती रही
जीवन राज कहती रही
त्यागमय है जीवन
त्याग करती रही
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