नजर आते हैं

बीते लम्हों को कभी याद जो मैं करता हूं
थकी आंखों में मेरे अश्क नजर आते हैं
नहीं छुपा के रखता बात जो भी दिल में कभी
खुली किताब वो जीवन की नजर आते हैं
एक एक लब्ज पर अब नाचने का मन करता
बीते हुए वक्त अब तो गीत नजर आते हैं
बिना सुर ताल के ये दिल जो मेरा हंस देता
उसमें ही जिंदगी के राज नजर आते हैं
देता जो साथ यहां दूसरे का जीवन भर
उसीमे नेक दिल इंसान नजर आते हैं
ओढ लेते है दूसरे के दुख की जो चादर
वही तो जग में फरिश्ते से नजर आते हैं
जो ना महसूस करें छोटा या बड़ा क्या है
उसी मे तो सदा भगवान नजर आते हैं
जोभी इस प्रेम को इस देह से ऊपर समझा
उसी में प्रेम ये जीवित से नजर आते हैं

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रचनाकार

Author

  • गिरिराज पांडे

    गिरिराज पांडे पुत्र श्री केशव दत्त पांडे एवं स्वर्गीय श्रीमती निर्मला पांडे ग्राम वीर मऊ पोस्ट पाइक नगर जिला प्रतापगढ़ जन्म तिथि 31 मई 1977 योग्यता परास्नातक हिंदी साहित्य एमडीपीजी कॉलेज प्रतापगढ़ प्राथमिक शिक्षा गांव के ही कालूराम इंटर कॉलेज शीतला गंज से ग्रहण की परास्नातक करने के बाद गांव में ही पिता जी की सेवा करते हुए पत्नी अनुपमा पुत्री सौम्या पुत्र सास्वत के साथ सुख पूर्वक जीवन यापन करते हुए व्यवसाय कर रहे हैं Copyright@गिरिराज पांडे/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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