होली तेरे गांव की , बड़ी रसीली यार ।
गोरे गोरे अंग से , झर – झर झरे फुहार ।।
देवर – भाभी साथ में , और ननद है संग ।
इन सबकी हुडदंग से , भैया होते दंग ।।
लोक – लाज का मान रख , निभे प्रीत की रीत ।
प्रेम – परक सब खेलिए , सबके मन को जीत ।।
लोग करेंगे त्यौहार में , जल संकट के तर्क ।
किन्तु एक यह दिवस में , नहीं पड़ेगा फर्क ।।
कृतिम रंग मत पोतना , बालाओ के गाल ।
वरना फिर मच जाएगा , अनचाहा भौकाल ।।
तुम खुशियों में चूर हो , हम दुख में मजबूर ।
रंग लिपटते आपसे , हमको देखें घूर ।।
प्रिया तुम्हारे गाल का , रंग हुआ यूं लाल ।
उतर गया मादक नशा , टेसू करे मलाल ।।
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