हम बैरागी हो गए , मत अब डोरे डाल ।
खारा पानी मन हुआ , नहीं गलेगी दाल ।
मुखड़ा उस मासूम का , जैसे खिला गुलाब ।
लहज़ा उसका रेशमी , बजता हुआ रबाब ।
रजनीगंधा सी हँसी , मुखड़ा है रजनीश ।
बदन लरज़ती शाख़ है , कुदरत का आशीष ।
बहुत उठाए आपने , इन बच्चों के नाज़ ।
अब सुनिएगा उम्र भर , ये ऊंची आवाज़ ।
रखो जला कर राह में , तुम यादों के दीप ।
शायद कोई लौट कर , आए पुनः समीप ।
आभा तेरी चंपई , औ नीलम परिधान ।
जैसे चांद उतारता , बादल बीच थकान ।
ब्रह्मा का पुष्कर हुआ , ख़्वाजा का अजमेर ।
गेंदा और गुलाब के , संग मुस्काय कनेर ।
झरनों की है पचमढ़ी , झीलों का भोपाल ।
मध्य प्रांत में उड़ रहा , कुदरत का रूमाल ।
शिव नगरी उज्जैन में , महाकाल का लोक ।
चमक रहा हर शीश पर , क्षिप्रा का आलोक ।
तुम हो कोई योद्धा , कहे तुम्हारा ओज ।
हम शैदाई प्रेम के , हम हैं खिले सरोज ।
आंखों में सद्भाव हो , मन में रहे उजास ।
तभी समझना दोस्तो , दौलत अपने पास ।