मिटा अंधेरा रात का , उतरी मन में भोर ।
आंखों में कलियां खिलीं , नयनों नाचे मोर ।
उड़ती फिरती बाग में , संग हवा के भोर ।
छुपा हुआ हर फूल में , मनमोहन चितचोर ।
रहे साथ में उम्र भर , सारे हिरदय हीन ।
टुकड़े टुकड़े हो गया , जीवन का कालीन ।
हमने खाई उम्र भर , मन पर गहरी चोट ।
धीरे धीरे घुन रहा , जीवन का अखरोट ।
अपनी अपनी ज़िंदगी , अपने पुन औ पाप ।
कोइ कहे वरदान है , कोइ कहे अभिशाप ।
पलकों पर सोती रही , गई रात की जंग ।
झरे नयन की कोर से , नवल भोर के रंग ।
बरसे बादल सांवरे , हवा हुई बेचैन ।
संग धरा के भीगते , मृगनयनी के नैन ।
आज सुबह से बाग में , घुली महकती याद ।
करते रहते फूल सब , प्यार भरा संवाद ।
खिली महकती रोशनी , जगी नयन में भोर ।
सोचा तुमको प्यार से , हँसी होंठ की कोर ।
शरमाई आकाश में , नई नवेली भोर ।
पंछी चहके बाग में , आज़ादी चहुं ओर ।
चाहे ढलती शाम हो , चाहे खिलती भोर ।
मन में रणभेरी बजे , मचता रहता शोर ।