दिल के फूल

उसके भावो में जो डूबा एक कली सी खिल गई
रंग रूप से ही उसके खुशबू अब बिखर गई
तोड़ ना ले जाए दूजा कोई उसको बाग से
रखता हूं दिल में छुपा के प्रेम डोरी बांधकर
फूल होता ही सदा है खुशबू देने के लिए
चाहता हूं रंग नया कोई उस पे वार दूं
खिल गया है जो सुबह ओ शाम तक खिलता रहे
खिल के डाली पर सदा यू ही महकता रहे
दूर ना हो अब कभी भी अपने इस फूल से
वह हमेशा ही रहे अब पास बनकर फूल सी
फिर कभी पतझड़ न छाए खिल रहे इस फूल पर
हर समय खिलती बहारे ही रहे इस फूल पर
सारा जीवन ही सुगंधित आज उसका हो गया
है बाहरे संग जिसके पास में ये फूल है

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रचनाकार

Author

  • गिरिराज पांडे

    गिरिराज पांडे पुत्र श्री केशव दत्त पांडे एवं स्वर्गीय श्रीमती निर्मला पांडे ग्राम वीर मऊ पोस्ट पाइक नगर जिला प्रतापगढ़ जन्म तिथि 31 मई 1977 योग्यता परास्नातक हिंदी साहित्य एमडीपीजी कॉलेज प्रतापगढ़ प्राथमिक शिक्षा गांव के ही कालूराम इंटर कॉलेज शीतला गंज से ग्रहण की परास्नातक करने के बाद गांव में ही पिता जी की सेवा करते हुए पत्नी अनुपमा पुत्री सौम्या पुत्र सास्वत के साथ सुख पूर्वक जीवन यापन करते हुए व्यवसाय कर रहे हैं Copyright@गिरिराज पांडे/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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