तुम वीणा तुम बांसुरी , तुम रसवंत सितार ।
तुम हिरदय की स्वामिनी , तुम मेरा गलहार ।
तुम नदिया रस की भरी , तुम झरनों का नीर ।
तुम नयनों का चैन हो , तुम मनवा की पीर ।
फागुन बैठा आम पर , मनवा करे किलोल ।
कोई आ कर बोल दे , दो मीठे से बोल ।
मन में जलती होलिका , तन पर बिखरे रंग ।
तुम बिन कहां उमंग है , तुम बिन कहां तरंग ।
नजर बिछी है राह पर , होठों पर है प्यास ।
गए सांवरे छोड़ कर , यादों का इतिहास ।
मन से झरती गंध है , तन से छलके नूर ।
पास तुम्हारे मन मिरा , तन है तुमसे दूर ।
तन गगरी रस की भरी , मन जंगल का फूल ।
प्रीत तुम्हारी प्राण में , रही पालना झूल ।
अब के लाई ज़िंदगी , बिन अम्मा के फाग ।
कैसे छलकें रंग अब , कैसे मचले राग ।
रही जलाती उम्र भर , हमे वक्त की धूप ।
शायद शीतल छांव दे , कभी तुम्हारा रूप ।
पावन जल पावन धरा , पावन रूप अनेक ।
देसी और विदेशी क्या , भारत में सब एक ।
तन खजुराहो की झलक , मन मोती का हार ।
तुमसे हैं सिंगार सब , तुमसे खिले बहार