तुम वक्त सी निरंतर मुझमें चलती हो,
मैं मौसम बन बदलता रहता हूँ ll
कभी खुद के अन्दर का अंधेरा लिए,
उजालों में भटकता रहता हूँ ll
आते जाते रहे,
मैं महीनों की तरह बदलता रहा l
खुशियाँ हाशिये पर खड़ी,
दम तोड़ती रहीं l
गम बाजुयें फैलाये,
बुलाता रहा ll
फिर,
एक दिन अचानक,
दिसंबर माह का अंतिम दिन आया l
तुम किसी और कैलेंडर के ,
जनवरी के प्रथम दिन हो गए,
मैं अन्तिम पृष्ठ पर,
लिए दूध, अख़बार, और कई हिसाब,
तुम नए वर्ष के,
नए रेजोल्यूशन हो गए ll
मैं यादों और उसूलों की माला फिराता रहा ,
तुम्हारा चेहरा सपनों में भी आता जाता रहा ll
गर्मियों में पिघलती रहीं वो पुरानी बातें ,
ठंड में वो रिश्ता निस्प्राण हो जाता रहा ll
फिर भी तुम अब भी नसों में बनके लहू दौड़ती हो,
मैं हृदय बन धड़कता रहता हूँ l
रात अमावस की है या पूर्णिमा की क्या फर्क,
मैं चंद्रमा सा हमेशा तन्हा रहता हूँ ll
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