तुम वक्त सी निरंतर मुझमें चलती हो

तुम वक्त सी निरंतर मुझमें चलती हो,

मैं मौसम बन बदलता रहता हूँ ll

कभी खुद के अन्दर का अंधेरा लिए,

उजालों में भटकता रहता हूँ ll

तुम दिन के माफिक कैलेंडर में,

आते जाते रहे,

मैं महीनों की तरह बदलता रहा l

खुशियाँ हाशिये पर खड़ी,

दम तोड़ती रहीं l

गम बाजुयें फैलाये,

बुलाता रहा ll

फिर,

एक दिन अचानक,

दिसंबर माह का अंतिम दिन आया l

तुम किसी और कैलेंडर के ,

जनवरी के प्रथम दिन हो गए,

मैं अन्तिम पृष्ठ पर,

लिए दूध, अख़बार, और कई हिसाब,

तुम नए वर्ष के,

नए रेजोल्यूशन हो गए ll

मैं यादों और उसूलों की माला फिराता रहा ,

तुम्हारा चेहरा सपनों में भी आता जाता रहा ll

गर्मियों में पिघलती रहीं वो पुरानी बातें ,

ठंड में वो रिश्ता निस्प्राण हो जाता रहा ll

फिर भी तुम अब भी नसों में बनके लहू दौड़ती हो,

मैं हृदय बन धड़कता रहता हूँ l

रात अमावस की है या पूर्णिमा की क्या फर्क,

मैं चंद्रमा सा हमेशा तन्हा रहता हूँ ll

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रचनाकार

Author

  • आलोक सिंह "गुमशुदा"

    शिक्षा- M.Tech. (गोल्ड मेडलिस्ट) नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी कुरुक्षेत्र, हरियाणा l संप्रति-आकाशवाणी रायबरेली (उ.प्र.) में अभियांत्रिकी सहायक के पद पर कार्यरत l साहित्यिक गतिविधियाँ- कई कवितायें व कहानियाँ विभिन्न पत्र पत्रिकाओं कैसे मशाल , रेलनामा , काव्य दर्पण , साहित्यिक अर्पण ,फुलवारी ,नारी प्रकाशन , अर्णव प्रकाशन इत्यादि में प्रकाशित l कई ऑनलाइन प्लेटफार्म पर एकल और साझा काव्यपाठ l आकाशवाणी और दूरदर्शन से भी लाइव काव्यपाठ l सम्मान- नराकास शिमला द्वारा विभिन्न प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत व सम्मानित l अर्णव प्रकाशन से "काव्य श्री अर्णव सम्मान" से सम्मानित l विशेष- "साहित्यिक हस्ताक्षर" चैनल के नाम से यूट्यूब चैनल , जिसमें स्वरचित कविताएँ, और विभिन्न रचनाकारों की रचनाओं पर आधारित "कलम के सिपाही" जैसे कार्यक्रम और साहित्यिक पुस्तकों की समीक्षा प्रस्तुत की जाती है l पत्राचार का पता- आलोक सिंह C- 20 दूरदर्शन कॉलोनी विराजखण्ड लखनऊ, उत्तर प्रदेश Copyright@आलोक सिंह "गुमशुदा"/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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