तुम, मैं और हम

तुम थे,मैं था ।
थोड़ा थोड़ा सा अहम था l
“तुम” में “तुम” भरपूर था,
और मुझमें “मैं” l

मैं ऋणात्मक सा था,
एक छोटी सी लकीर ,
वहम के समानांतर ,
समझ रहा था अंतर l

फिर तुम में मुझे,
मेरे खुद के अंतर से बचा हुआ
शेष दिखा l
थोड़ा भविष्य के भाल पर,
हम का स्वरूप दिखा l

तुम ऊर्ध्वधार सी आकर,
मुझे बदलने लगी,
ऋणात्मक को,
धनात्मक करने लगी l

इधर उधर सब बिखरा जुड़ने लगा,
वक्त भी थोड़ा थोड़ा हंसने लगा l
फिर तुम में मैं दिखने लगा ,
और मुझमें तुम l

दोनों ने फिर कोशिश की,
न “तुम” रहे ना “मैं” l

दोनों ने मिलकर
धनात्मक को थोड़ा घुमाया,
मैंने भी ऋणात्मक की यात्रा को,
गुणात्मक तक पहुंचाया।
फिर तुम और मैं हम हो गए,
फूल पत्ती काँटें सब महक गए l

हाँ, आसान तो नहीं था,
मैं की आग को बुझाना,
जिन्दगी के भाग (division) को दौड़ाना l
कभी आंसुओं को हंसाना,
कभी हालातों को झूला झुलाना l
पर आसान भी तो नहीं होता,
तुम को मैं को छोड़,
हम हो जाना ll

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रचनाकार

Author

  • आलोक सिंह "गुमशुदा"

    शिक्षा- M.Tech. (गोल्ड मेडलिस्ट) नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी कुरुक्षेत्र, हरियाणा l संप्रति-आकाशवाणी रायबरेली (उ.प्र.) में अभियांत्रिकी सहायक के पद पर कार्यरत l साहित्यिक गतिविधियाँ- कई कवितायें व कहानियाँ विभिन्न पत्र पत्रिकाओं कैसे मशाल , रेलनामा , काव्य दर्पण , साहित्यिक अर्पण ,फुलवारी ,नारी प्रकाशन , अर्णव प्रकाशन इत्यादि में प्रकाशित l कई ऑनलाइन प्लेटफार्म पर एकल और साझा काव्यपाठ l आकाशवाणी और दूरदर्शन से भी लाइव काव्यपाठ l सम्मान- नराकास शिमला द्वारा विभिन्न प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत व सम्मानित l अर्णव प्रकाशन से "काव्य श्री अर्णव सम्मान" से सम्मानित l विशेष- "साहित्यिक हस्ताक्षर" चैनल के नाम से यूट्यूब चैनल , जिसमें स्वरचित कविताएँ, और विभिन्न रचनाकारों की रचनाओं पर आधारित "कलम के सिपाही" जैसे कार्यक्रम और साहित्यिक पुस्तकों की समीक्षा प्रस्तुत की जाती है l पत्राचार का पता- आलोक सिंह C- 20 दूरदर्शन कॉलोनी विराजखण्ड लखनऊ, उत्तर प्रदेश Copyright@आलोक सिंह "गुमशुदा"/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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