तुम्हारी नज़रों के सामने,
सब बदल रहा था l
पर तुम शांत थी ll
जैसे कोई,
तालाब में पत्थर फेंक,
देखता रहता है लहरों को l
जैसे कोई,
पहाड़ की ढलान पर,
हाथ छोड़ ,
देखता रहता हो ,
लुढ़कते हुए कदमों को ll
बदलाव तो अचानक नहीं होता है न,
पर बदलाव की शुरुवात अचानक होती है ll
बदलाव की रफ़्तार कभी तेज़ कभी धीमी
और अगर न लग सके ब्रेक,
तो तोड़ कर सभी दीवारों को,
अन्त में बदलाव की प्रक्रिया पूर्ण होती है ll
बदलाव हमेशा सकारात्मक नहीं होता,
लेकिन सकारात्मक बदलाव की रफ़्तार तेज़ होती है l
क्योंकि उसमें होती है शिद्दत,
और सकारात्मक उर्जा l
और नकारात्मक बदलाव हमेशा
घर्षण युक्त होते हैं,
कई ऊर्जाएं रोकती हैं l
कई जिम्मेदारियां टोकती हैं ll
और परिणाम भी तो,
दोनों का अलग अलग होता है l
सब कुछ तो पता था तुमको,
पर तुमने मुझे ,
मेरी नकारात्मकता के साथ बदलने दिया l
कभी कर्ता बनकर, कभी कर्म बनकर
तो कभी क्रिया तो कभी प्रतिक्रिया बनकर l
तुमने बदलाव की प्रक्रिया को ,
मुक्कमल होने दिया ll
अब मैं तटस्थ हो चुका हूँ,
अब मैं “अधूरा सम्पूर्ण” हो चुका हूँ ll
सारी ख्वाहिशों के बांध टूट चुके हैं ,
इस बदलाव की प्रक्रिया में
हम भी हैं अब टूट चुके हैं ll