तुमने फिर से बना लिए नए किरदार,
मुझे, मेरी तन्हाई, मेरी बेवफाई को l
तुम्हारी,
कलम लिखते लिखते दौड़ने लगी,
कागज़ पर कुछ नई कहानी सजोने लगी l
तुम्हारे,
जज़्बातों ने कभी मुझे जाहिल कहा !
ख्यालातों ने कभी मुझे काफ़िर कहा !
तुमने लिखा, मैं समधर्मी हूँ,
तुमने लिखा, मैं अधर्मी हूँ l
मैंने देखा , तुम्हारे हाथों की रफ़्तार,
तुम्हारे विचारों से मेल नहीं खा रहे थे l
कभी हम तो कभी सिर्फ हम,
तुम्हारे यादों के आंगन में आ जा रहे थे l
तुम लिखती जा रही थी ,
अपनी बातों की भड़ास,
लेखन में निकाल रही थी l
मैं उधर बैठा,
तुम्हारा लिखा पढ़ने के इंतजार में था l
मैं मुजरिम था,
पर अंतिम फैसले की आश में था l
तुम फैसला लिख रही थी ,
फैसले पर लिखे पहले शब्द,
“प्रिय ” से मुझे दूर कर रही थी l
खाली कागज़,
रिश्तों के खून से भर चुका था l
तुम्हारी कलम टूट चुकी थी ,
और मैं मर चुका था ll
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