तसब्बुर में तेरे रहा उम्र भर
न पूछो कि क्या क्या सहा उम्र भर
है पागल दीवाना कहा उम्र भर
पता है न साहिल मिलेगा मुझे
मैं मौज़ों पे फिर भी बहा उम्र भर
मुहब्बत की कर इब्तिदामै तेरी
रहा ढूँढता इन्तेहा उम्र भर
घरौंदा मैं सागर किनारे का हूँ
बना उम्र भर और ढहा उम्र भर
मुहब्बत की लौ में सहर शाम ही
मैं परवाने जैसा दहा उम्र भर
उसी शख़्स पे राज मरता रहा
जो पढता रहा फातिहा उम्र भर
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