ज्ञान दायिनी हे मातु,वीणा पाणि सरस्वती,
दया दृष्टि थोड़ी सी तो,मुझपे दिखाइए।
मैं अजान बालक हूं चरणों में मातु तेरे
ज्ञान चक्षु खोल मेरो मन हरसाइए।
धवल वस्त्र धारिणी हंस वाहिनी हे मातु,
याचना यही है मेरी अपना बनाइए।
जैसे कालिदास जी के मार्ग को प्रशस्त किया,
वैसे मातु मुझको भी चलना सिखाइए।।
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