जो बदन थी

जो बदन थी

दोहरी, इकहरी हो गई,

ग़मों की धूप से हट

जा, दुपहरी हो गई|

प्यार उसका अभीतक, भूला नहीं पाया,

ऐसा लगता है

मुझे, यादें और गहरी हो

गईं|

Facebook
WhatsApp
Twitter
LinkedIn
Pinterest

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

रचनाकार

Author

  • बजरंगी लाल

    Copyright@बजरंगी लाल / इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

Total View
error: Content is protected !!