जिन्हें अपना समझ रखा था

जिन्हें अपना समझ रखा था सारे गैर निकले
जो दबा के रखा था दिल में सुकून की तरह
वह सारे ख्वाब जहर निकले
हमें वफा मिली गांव की गलियों में
बेवफा सारे शहर निकले
उसकी नादानियां समझ कर जिन्हें भूल जाता था
वो उस नादान के कहर निकले
जब वही बेवफा है तो कोई फर्क नहीं पड़ता
अब मेरे जनाजे में चार आदमी चले या पूरा शहर निकले
मुझे उसकी गली से मत ले जाना इस नजर का कोई भरोसा नहीं क्या पता सिर्फ उसी के चेहरे पर जा फिसले
उसे कह देना के डूब गया उसका सूरज ना जाने फिर वह चांद कई वर्षों बाद निकले या ना निकले

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रचनाकार

Author

  • नरेंद्र शास्त्री

    पिता - श्री नरेश कुमार, पता-ग्राम धीरपुर, डाक खाना- खानपुर कोलिया , तहसील-थानेसर, जिला -कुरुक्षेत्र, pin-136131, राज्य-हरियाणा, जन्म तिथि 05,04,1986, शिक्षा - विशारद,शास्त्री M A ( हिंदी)M.ed, व्यवसाय-शिक्षक. प्रकाशन-2 कविताएं k b writer की मधुर बेला पुस्तक में, लेखन के क्षेत्र में सम्मान - राजभाषा सम्मान 2020, साहित्य सागर सम्मान 2022,Copyright@नरेंद्र शास्त्री / इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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