जिन्हें अपना समझ रखा था सारे गैर निकले
जो दबा के रखा था दिल में सुकून की तरह
वह सारे ख्वाब जहर निकले
हमें वफा मिली गांव की गलियों में
बेवफा सारे शहर निकले
उसकी नादानियां समझ कर जिन्हें भूल जाता था
वो उस नादान के कहर निकले
जब वही बेवफा है तो कोई फर्क नहीं पड़ता
अब मेरे जनाजे में चार आदमी चले या पूरा शहर निकले
मुझे उसकी गली से मत ले जाना इस नजर का कोई भरोसा नहीं क्या पता सिर्फ उसी के चेहरे पर जा फिसले
उसे कह देना के डूब गया उसका सूरज ना जाने फिर वह चांद कई वर्षों बाद निकले या ना निकले
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