जिन्दगी का रहस्य पता ही नहीं

जिंदगी एक उलझा हुआ ख्वाब है
कब ओ क्या देखले कुछ पता ही नही
जो हुआ ना कभी भी दिवास्वप्न में
रात में कैसे आया पता ही नही

रात आती गई दिन ये ढलते गए
जिंदगी के सफर रोज कटते गए
दुख भरे पल ये जीवन के कटते नहीं
सुख के पल कब ये बीते पता ही नहीं

जिंदगी सिलसिला काफी लंबा रहा
मौत का साथ तो दो पल भी नहीं
मुंह छुपाकरके बैठी कहां अब तलक
बात इतनी किसी को पता ही नहीं

गम कभी तो कभी खुशियां मिलती गई
सबकी ही जिंदगी यूं गुजरती गई
स्वार्थ के भाव में डूबते ही गए
क्यों मैं आया जगत में पता ही नहीं

उग गया हो मगर ना ढला हो कोई
एक जैसा ही जग में रहा हो कोई
चाहे बचने का कितना भी कर ले जतन
वक्त के छल से कोई बचा ही नहीं

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रचनाकार

Author

  • गिरिराज पांडे

    गिरिराज पांडे पुत्र श्री केशव दत्त पांडे एवं स्वर्गीय श्रीमती निर्मला पांडे ग्राम वीर मऊ पोस्ट पाइक नगर जिला प्रतापगढ़ जन्म तिथि 31 मई 1977 योग्यता परास्नातक हिंदी साहित्य एमडीपीजी कॉलेज प्रतापगढ़ प्राथमिक शिक्षा गांव के ही कालूराम इंटर कॉलेज शीतला गंज से ग्रहण की परास्नातक करने के बाद गांव में ही पिता जी की सेवा करते हुए पत्नी अनुपमा पुत्री सौम्या पुत्र सास्वत के साथ सुख पूर्वक जीवन यापन करते हुए व्यवसाय कर रहे हैं Copyright@गिरिराज पांडे/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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