जिस दिन जिंदगी की शाम हो जाएगी
सब रोते ही रहेंगे कहीं खुशी ना नजर आएगी
लगेगा सूना सूना सा ए सारा जमाना
बहार की रुत भी खिजा में बदल जाएगी
सूर्य का उजाला भी ना रोशनी दे सकेगा
कड़ी धूप भी अंधेरी रात नजर आएगी
अनजान होगी राहे बेजान होंगे रस्ते
ढोना पड़ेगा तुझको दुख से भरे ये बस्ते
ये दर्द भरी आंहे भी बे लगाम हो जाएगी
जिस दिन जिंदगी की शाम हो जाएगी
नहीं दिखेगा सूरज नहीं दिखेगा चन्दा
हर ओर जहां में उदासी ही छाएगी
तेरे साथ कुछ भी नहीं जाएगा
सारी दौलत तुम्हारी यही रह जाएगी
ना उजाले ही होंगे मन में ना रोशनी ही छाएगी
जिस दिन जिंदगी की शाम हो जाएगी
फिर जीवन तुम्हारी एक कहानी बनेगी
तुम्ही उस कहानी के नायक बनोगे
तुम्हारे ही कर्मों पर करता है निर्भर
कि नायक बनोगे या खलनायक बनोगे
मनुष्य जीवन में कर ले सन्घर्ष कितना
विजय तो हमेशा सत्य की होगी
यह काया उस दिन मिट्टी में मिल जाएगी
जिस दिन जिंदगी की शाम हो जाएगी
रचनाकार
Author
गिरिराज पांडे पुत्र श्री केशव दत्त पांडे एवं स्वर्गीय श्रीमती निर्मला पांडे ग्राम वीर मऊ पोस्ट पाइक नगर जिला प्रतापगढ़ जन्म तिथि 31 मई 1977 योग्यता परास्नातक हिंदी साहित्य एमडीपीजी कॉलेज प्रतापगढ़ प्राथमिक शिक्षा गांव के ही कालूराम इंटर कॉलेज शीतला गंज से ग्रहण की परास्नातक करने के बाद गांव में ही पिता जी की सेवा करते हुए पत्नी अनुपमा पुत्री सौम्या पुत्र सास्वत के साथ सुख पूर्वक जीवन यापन करते हुए व्यवसाय कर रहे हैं Copyright@गिरिराज पांडे/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |