ज़िन्दगी दामन जला दे और क्या ।
हँस पड़ा था ग़म बढ़ा दे और क्या ।
प्यार की ख़ातिर तना था तीर सा ।
प्यार की ख़ातिर झुका दे और क्या ।
नींद थी तो ख़्वाब थे परियां भी थीं ।
तेरी मर्ज़ी फिर जगा दे और क्या ।
बीज हूँ मैं कल शजर हो जाऊँगा ।
आज धरती में मिला दे और क्या ।
मैं पुराना ख़त हूँ गुज़रे वक़्त का ।
मुझको गंगा में बहा दे और क्या ।
अश्क़ पलकों में भला कब तक रहेगा ।
आंख से अपनी गिरा दे और क्या ।
ज़िन्दगी दे मौत दे मुंसिफ़ है तू ।
फ़ैसला अपना सुना दे और क्या ।
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