तीन ही होते हैं ,
ज़िंदगी के प्राथमिक रंग l
माँ , पिता और परमात्मा l
जैसे होता है रंगहीन जल,
पर धारण रखे हुए है नीला रंग l
प्यास बुझा,
देता रहता है जीवन दान,
कैसी भी हो जीवन की जंग l
वैसे ही माँ को समझा जा सकता है
माँ के नाम किया जा सकता है नीला रंग l
पिता जो सचेत करता है,
सूरज सा सब लुटाता हुआ,
चमकता रहता है ,
दहकता रहता है l
लाल वर्ण का रिप्रेजेंटेटिव
समझा जा सकता है l
कर्ण सा महान
और दधीचि सा दानी,
कहा जा सकता है l
और पीले रंग सा परमात्मा,
उत्पन्न करता रहता है कई भाव l
और पैदा करता रहता है,
सुख, शांति,
अध्ययन, विद्वता,
योग्यता, एकाग्रता
और मानसिक बौद्धिक उन्नति का स्वभाव l
इन्हीं तीनों रंगों से
जिन्दगी के तमाम पहलुओं के
secondary रंग बनते हैं l
खुले आसमान में,
कभी जुगनू सा चमकते हैं l
कभी चंद्रमा सा,
करने लगते हैं परिक्रमा l
कभी शरीर के कई अंग होते हैं l
प्रेम की सभी परिभाषा में,
सिर्फ ये ही होते हैं l
भौतिक, आध्यात्मिक सभी सुख में
ये ही रहते हैं l
बच्चे जब जिम्मेदारियों की मथनी से
मथे जाते हैं l
मुस्किलों के हथौड़ों से गढ़े जाते हैं ,
तो
जिंदगी की सारी मिलावटों से मुक्त हो,
हो जाते हैं प्राथमिक रंग l
जिन्दगी के रंगों को यात्रा,
प्राथमिक रंगों से शुरू हो,
प्राथमिक रंगों पर ही खत्म हो जाती है l
यूं तो,
जिन्दगी हमेशा
secondary रंगों सा अपना रूप दिखाती है l