प्रेम द्र्वित ना हो जब दिल में
मुखड़ा क्या देखे दर्पण में
सुख देखे दूजे का कैसे
भरी हुई ईर्ष्या जो मन में
राज दिलों में छुपा के रखता
भरी हुई जो खोट है मन में
जग ये सुंदर लगे भी कैसे
इच्छा के जो मोड़ है मन में
दान करेगा कैसे उनको
लालच ही जब भरी हो मन में
आनंद कहां से मिलेगा उनको
अध्यात्म ग्यान जो नही है मन में
तब कौन किसी का होता है
जब स्वार्थ भरा ही हो जीवन में
अपनत्व की आभा छाए कैसे
जब खंजर चुभा हुआ हो दिल में
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