जब तक दूध दिहिन भर लोटा
तब गइया रहीं हमार
साल पूर भा बिचुख गईं जब
राति गईं नदिया वहि पार
यनहूं हांकैं उनहूं हांकै
निबरू हांकैं ठंडा मार
छत्तीस कोटी देव रक्षिका
दियखौ केतना भईं लचार !
आखिर कब तक भूंख दबावैं
बिन खाए कसकै रहि पावैं
अतना जाड़ मुला वै गइयां
बइठ सिवानेम् आंसु चुवावैं
मनई तुमका सौ धिक्कार
स्वारथ सिद्ध तौ अम्मा भार
कथा भागवत दिन भर पूजा
कौने लाने जय जयकार
छत्तीस कोटी देव………..
लेरुवन का जब कूकूर नोचैं
आंखि आंसु भर गइया सोचैं
घर होते तौ घंटी बाजत
उठैं सींग कुकुरेन् का कोचैं
रूंधा खेत कंटीला तार
कइसै नाघैं पीठ सम्हार
खूनी पीठ लिहा वै लउटैं
जइसै देखि लियैं रखवार
छत्तीस कोटी देव…….
जेहकै महिमा बेद बखानैं
जेहकै गुन कुलि अम्मा जानैं
उनकै देखौ कवन दसा है
मनई मनई अंगुरी तानैं
बनि बनि बइठे लम्बरदार
रोजै हल्ला रोज गोहार
अपनै पगहा खोलि खदेरैं
झंखयि सुनत नाय सरकार
छत्तीस कोटी देव रक्षिका
केतना आज भईं लाचार !!