छिप छिप के तीर दिल पे चलाते हो किसलिए
यूँ दुश्मनी मेरे से निभाते हो किसलिए
जाना ही है तो पास ही आते हो किसलिए
गर प्यार है तो छोड़ के जाते हो किसलिए
दीवानगी हमारी बढ़ाते हो किसलिए
बस ये बता दो इतना सताते हो किसलिए
जब सर झुका दिया तुम्हारे सामने है तो
बेबात की ये बात बढ़ाते हो किसलिए
दिल जाँ जिगर से तुमपे फ़िदा है जो उसे ही
तुम बेवफ़ाई कर के रुलाते हो किसलिए
हो बावफ़ा अगर तो बताओ न जान तुम
आगोश ए रकीब में जाते हो किसलिए
अनमोल है नेमत ये *राज* जान के भी जाँ
तुम प्यार का ज़नाज़ा उठाते हो किसलिए
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