चाहतें थीं दिल में जो

चाहतें थीं दिल में जो भी,जता न पाए हम कभी,
मन तुम्हारा हो गया पर,बता न पाए हम कभी।
इश्क़ का इज़हार कर लूं, तुमसे,दिल करता रहा,
पर इशारों को तुम्हारे,पता न पाए हम कभी।।१।।

रात दिन आराधना में,हम तुम्हारे लीन थे,
रात थी वो शुक्ल-पक्षी,ख्वाब में तल्लीन थे।
हो नही पाई मुखर,जो,चाहते दिल में रहीं,
पास था सब कुछ हमारे,बिन तुम्हारे दीन थे।।२।।

Facebook
WhatsApp
Twitter
LinkedIn
Pinterest

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

रचनाकार

Author

  • बजरंगी लाल

    Copyright@बजरंगी लाल / इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

Total View
error: Content is protected !!