घिर गया आजकल मैं सवालों में हूँ

घिर गया आजकल मैं सवालों में हूँ

कुछ ख्वाबों में हूँ , कुछ ख़यालों में हूँ!

रात है या कि दिन कुछ ख़बर ही नहीं

कुछ अँधेरों में हूँ , कुछ उजालों में हूँ !

उनकी नज़रों में हूँ चैन- आराम से

क्यों बताऊँ भला पायमालों में हूँ ।

ख़ुद की ख़ुशियाँ या ग़म हैं जुदा तो नहीं

सबकी खुशियों में , सबके मलालों में हूँ।

जंग अपनी पुरानी अँधेरों से है

दीप में जल रहा मैं ,मशालों में हूँ!

सुरभि की ही तरह अपनी भी शख़्सियत

मूल में , फूल में, पत्र ,डालों में हूँ !

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रचनाकार

Author

  • डॉ रवीन्द्र उपाध्याय

    प्राचार्य (से.नि.),हिन्दी विभाग,बी.आर.ए.बिहार विश्वविद्यालय,मुजफ्फरपुर copyright@डॉ रवीन्द्र उपाध्याय इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है| इन रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है|

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