आज फिर अपने
गांव जा रहा हूँ
वही पीपल, सिमल
और बरगद के
छाँव जा रहा हूँ
आज फिर अपने
गाँव जा रहा हूँ
फिर से खेलूंगा
चोर सिपाही
बच्चों की टोली में
मुँह से हीं ठांय ठांय
करता है सब
आवाज न होती
बंदूक की गोली में
बहुत मिठास है
उन बच्चों की बोली में
शहर को बाय बाय
कर रहा हूँ
आज फिर अपने
गांव जा रहा हूँ
क्रिकेट, कुस्ती
गप्पें और मस्ती
होगी उन मैदानों में
हाथ मिलाकर खूब घूमेंगे
दोस्तों संग बाजारों में
पर्व,त्योहार में रंग गुलाल
खूब उड़ेगी,
उन बसंत बहारों में
नदियों को पार करने
के लिए,
लेने, नाव जा रहा हूँ
आज फिर अपने
गाँव जा रहा हूँ
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