गाँव जा रहा हूँ

आज फिर अपने

गांव जा रहा हूँ

वही पीपल, सिमल

और बरगद के

छाँव जा रहा हूँ

आज फिर अपने

गाँव जा रहा हूँ

फिर से खेलूंगा

चोर सिपाही

बच्चों की टोली में

मुँह से हीं ठांय ठांय

करता है सब

आवाज न होती

बंदूक की गोली में

बहुत मिठास है

उन बच्चों की बोली में

शहर को बाय बाय

कर रहा हूँ

आज फिर अपने

गांव जा रहा हूँ

क्रिकेट, कुस्ती

गप्पें और मस्ती

होगी उन मैदानों में

हाथ मिलाकर खूब घूमेंगे

दोस्तों संग बाजारों में

पर्व,त्योहार में रंग गुलाल

खूब उड़ेगी,

उन बसंत बहारों में

नदियों को पार करने

के लिए,

लेने, नाव जा रहा हूँ

आज फिर अपने

गाँव जा रहा हूँ

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4 Comments

  • Sudhir Bhagat December 26, 2022

    हमारी रचना को अपनी वेबसाइट में जगह देने के लिये हार्दिक आभार।

    • डॉ दिवाकर चौधरी December 26, 2022

      स्वागत है। यह मंच आप सभी रचनाकारों और पाठकों का ही है और आप सबों को ही समर्पित है।

  • Krishna Mohan Yadav December 26, 2022

    congratulations sudhir ji

  • सुधीर भगत December 26, 2022

    धन्यवाद,,,

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रचनाकार

Author

  • सुधीर सौरभ (भगत जी कलम वाले)

    नाम-सुधीर सौरभ, उपनाम-भगत जी कलम वाले, शिवहर, बिहार, Copyright@सुधीर सौरभ (भगत जी कलम वाले)/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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