ग़ज़लें सजाते हैं

ग़ज़लें सजाते हैं

कभी जब आरजू दिल की मचल कर गुनगुनाती है

वो कहते हैं कि तुमने फिर कई अश्आर कह डाले

कभी पूछूं कि तुमको भी कोई एहसास होता है

तो कहते हैं मोहब्बत ने कई दिल तोड़ डाले हैं

कोई दस्तक कभी भी तोड़ती है पास रिश्तो का

दिलों की बात ना पूछो यहाँ तो मोम है केवल

उसी कुछ मोम के क़तरे मेरी आंखों से बहते हैं

बड़ी ख़ामोश बैठी में उसी को देखती हूँ बस

वो कहते हैं बहुत ही आम सा मैं हूँ

तुम्हारी शख़्सियत का आईना भी ख़ास होता है

वहाँ जो चाँद बैठा है वह ज़्यादा पास है तुमसे

जुदाई की मिली दस्तक वही एहसास होता है

उन्हे कैसे बताऊं मैं कि ये है साँस का रिश्ता

मोहब्बत के सफ़ीने ने पर किसी एहसास का रिश्ता

वो कहते हैं हमेशा तुम बड़ी खामोश रहती हो

मुझे मालूम हो कैसे तुम आँखों से ही कहती हो

मैं कहती हूँ मेरी आँखें हैं देखो आईना दिल का

जहाँ पर अक्स है केवल तुम्हारे साथ होने का

मैं डरती हूँ मगर जाना, ख़्यालों की जुदाई से

जमाने से नहीं डरती वक्त की बेहयाई से

मेरी आँखों में देखो तुम मरासिम गुनगुनाते हैं

बदलकर रोशनाई में कई ग़ज़लें सजाते हैं

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रचनाकार

Author

  • डॉ अंजू सिंह परिहार

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