धूप का पर्वत खड़ा है सामने ।
और लम्बा रास्ता है सामने ।
फिर भरम का सिलसिला है सामने ।
चैन हमको मिल नहीं सकता कभी ।
हर कदम पे ये लिखा है सामने ।
वक़्त की रफ़्तार से कुछ बेख़बर ।
एक बच्चा सो रहा है सामने ।
मोम की गुड़िया घरौंदे रेत के ।
एक नन्हा परगना है सामने ।
ज़ुल्म का राजा कपट की रानियां ।
वह सियासत का किला है सामने ।
यूं लगा के रोशनी बहने लगी ।
आज फिर परदा उठा है सामने ।
डूब लो या बच के निकलो दूर से ।
प्यास का गहरा कुँआ है सामने ।
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