बेकरारी दिलों की छुपाने लगे
आग हाथों से अपने लगाने लगे
छा गया दिल में उसका नशा इस कदर
ख्वाब का एक महल अब बनाने लगे
जबसे दिल में मेरे उसकी खुशबू जगी
राग में उसके ही गुनगुनाने लगे
द्वेष का बीज मन में ना पनपे कभी
पीके बिष उसको अमृत पिलाने लगे
तोड़कर ब्यूरो मायूस इस उम्र का
घिर रही सांझ दीपक जलाने लगे
छोड़ धन को सदा भाव में डूब कर
प्रेम का इक नया घर बनाने लगे
मेरा सपना खरीदू नए दर्द को त्याग कर
पूजी दुका बनाने लगे
छोड़ कर ये जहां उस जहां में
बसूसोचकर ये लड़ाई हम लड़ने लगे
अपने दिल में ही मोती उगाऊगा मै
सोच दिल में भरे सीप बनने लगे
कुछ नया पाने को दिल ये बेचैन है
सबकी बेचैनियां अभ समझने लगे
जिसमें मडराये भंवरा कली पर
कभी ऐसे गुल का शहर अब बसाने लगे
मान सम्मान पाने की इच्छा जगी
प्रेम का हार दिल से बनाने लगे
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