खेल तमाशा सा जीवन है
खेल तमाशा सा जीवन है मौसम इक सैलानी है
पैकर है अपनी ख़्वाबों का जीवन अजब कहानी है
मुझको व परवाह नहीं है किस्मत की फरमानी की
जिसने बुत को ख़ुदा बनाया मेरी ही पेशानी है
सारा जीवन खर्च हुआ है जिसको यहँं बचाने में
वो मुस्तकबिल झुलस रहा है किसकी ये नादानी है
घर से लोग मशालें लेकर निकले हैं अँधियारे में
बेबस बच्चे बूढ़ी आँखें ये तस्वीर पुरानी है
कैसे-कैसे जख़्म दिए थे दिल के नाज़ुक दामन में
कैसे मैंने फूल बनाया उनको यह हैरानी है
मैं दरिया सा बह निकला हूं आँखों में सैलाब लिए
साहिल सारे टूट गए हैं सहरा पानी पानी है
आज वहाँ पर सन्नाटा है
मेरी नाफरमानी पर
यहाँ सल्तनत काँप रही है
मेरी साफ बयानी है
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