कई लोगों के ख़त आए पर एक तेरा नहीं आया l
शायद इस बार भी डाकिया मेरा घर नहीं पाया ll
बड़ी उम्मीद से देखा किये कबूतरों की राह,
घर की मुंडेर तक आया मगर मुझतक नहीं आया ll
सुना है ख़ून को स्याही बना दिल की बात लिखी है
कई सदियों की जागी रात को एक रात लिखी है ll
ख़त में कहीं भी नाम मेरा उसने नहीं लिखा,
पर जिक्र ऐसा है किया, कि जैसे मेरी बात लिखी है ll
कहीं खुशियों को जोड़ा है कहीं गम को घटाया है ,
कहीं पतझड़ में टूटे पर्ण, कहीं बरखा उड़ेला है ll
कहीं जज़्बात शरद से, कहीं कुछ ख्यालात गर्म से ,
कहीं गुमशुद को कर तन्हा लिखा मेला ही मेला है ll
मगर सच्चाई है कितनी जरा देखें मिले जब ख़त l
लिखा कितना मुझे उसने जरा देखें पढ़े जब ख़त ll
लिखूँगा मैं भी एक ख़त , पढ़ उसके उस ख़त को ,
रहूँगा होश में कितना जरा देखें छुए जब ख़त ll
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