मां !
अर्पित है चरणों में,
सादर नमन, वंदन !!
मां तो सिर्फ मां होती है। उसकी बराबरी दुनिया की कोई चीज नहीं कर सकती है न ही उसकी तुलना किसी से हो सकती है। मुस्कुराते हुए गरल सम कष्टों को सह लेती है मानो कुछ हुआ ही नहीं है।
परिवार की धुरी बनकर विभिन्न भूमिकाओं में एक ऐसी अप्रतिम और अतुलनीय शक्ति ,असीम सहनशीलता और अमूल्य संवेदना की ऐसी जीवित मूर्त्ति है जिसकी पूजा, अर्चन व वंदन के लिये विश्व की हर चीज तुच्छ पड़ जाती है।
मां ! काश, आज यह आभास हमें होता तो तुम्हारी जीवन संध्या मे तुम्हारी जो दुर्गति हम देख रहे हैं, उसे प्रकटीकरण के लिए धूमधाम से दुर्गा की उपासना, वाणी की वंदना, लक्ष्मी की अर्चना वर्तमान समाज में नारी के सम्मान, अस्मिता, सुरक्षा, स्वास्थ्य, स्वाधीनता, सद्भावना, पावनता और सहअस्तित्व की पुनीत भावना का उपहास सा लगता है !
मां ! मुझे क्षमा करना !! क्षमा के योग्य भी नहीं रह गया हूँ !!! जब तुम्हें वृद्धावस्था में घर में सेवा सुश्रुषा की जगह वृद्धाश्रमों मे देखता हूँ, घर की पावनता के प्रतीक की जगह घृणित कोठों पर देखता हूँ, रक्षाबंधन की बहन को रक्षा की गुहार की जगह रेप होते देखता हूँ, मां शारदा की साधना मे लीन छात्राओं के रूप मे लाठियों का प्रहार सहते हुए देखता हूँ, किशोरियों के रूप में तुम्हारी मोलभाव होते देखता हूँ, और तो और मां तुम्हें आशीर्वाद मांगती हुई कुछ तथाकथित धर्मगुरुओं की वासनाओं का शिकार होती हुई देखता हूँ तो सच पूछो मां आज अपने को असहाय महसूस करता हूँ !
क्या करूँ मां ? समझ मे नहीं आता ! सारा जीवन अन्याय से लड़ा हूँ, आदत सी बन गई है ! चुप भी नहीं बैठ सकता अपनी जीवन संध्या मे ! अभिव्यक्ति की हत्याओं से नहीं डरता ! मां, तुम तो अच्छी तरह जानती हो । असल मे डरता हूँ यह सोचकर, मां कि कब तक तुम अपने उपर सहोगी ऐसे घिनौने सामाजिक, राजनीतिक और दैहिक अत्याचार !
अंत मे एक बात कहूँ मां ! अब तुम स्वयं उठो मां , अपनी रक्षा स्वयं करने की बीड़ा उठा लो मां ! ढोंग, पाखंड की पूजा तुम्हारा उपहास है मां !
मेरी वाणी, मेरी संवेदना और मेरी पावन भावना आज मूक क्रंदन कर रही है मां ! क्षमायाचना के लायक भी नहीं हूँ मां ! बस आशीर्वाद दो लड़ने के लिए , क्षमता प्रदान करें ।
क्षमाप्रार्थी हूँ मां !