क्या कंप्यूटर शिक्षकों की जगह ले सकता है

कोई भी उन्नत से उन्नत तकनीक शिक्षक की जगह नहीं ले सकती। शिक्षक का काम केवल पढ़ाना-लिखाना ही नहीं होता बल्कि बच्चे का चहुंमुखी विकास करना होता है। इसके लिए शिक्षक को बच्चे के लेवल पर आना पड़ता है। उससे भावनात्मक रूप से जुड़ना पड़ता है। किसी कहानी में से सिर्फ अच्छी जानकारी पर जोर देना पड़ता है। तकनीक से बच्चा कोई कहानी पढ़ या सुन तो सकता है लेकिन उस कहानी से क्या सीखना है, क्या नहीं, ये फैसला कौन करेगा? और कौन कराएगा? कभी-कभी हमें अपने विवेक के अनुसार निर्णय करना होता है कि एक प्रश्न पर कितने मार्क्स दे? अलग-अलग समय पर एक बच्चे का अलग-अलग व्यवहार होता है और उस व्यवहार के अनुसार शिक्षक को कार्य करना पड़ता है। और बच्चा कभी अपनी परेशानी बताता नहीं है हमें समझना पड़ता है। क्या यह सब टेक्नोलॉजी के द्वारा संभव हो पायेगा, कभी नहीं। शिक्षा एक विज्ञान है। शिक्षा कला भी है। शिक्षण कार्य किसी तपस्या से कम नहीं है। शिक्षा ही वह राह है, जो परिवारों और इंसानों की तकदीर बदल सकती है। एक शिक्षक का काम सबसे गंभीर और जिम्मेदारी का। टेक्नोलॉजी जरूर शिक्षण को आसान और उन्नत बनाने में मददगार हो सकती है, लेकिन टेक्नोलॉजी कभी भी एक शिक्षक और समुदाय की समर्पण भावना का विकल्प नहीं हो सकती। हम जो तकनीक के क्षेत्र में काम कर रहे हैं, इस भ्रम में बिलकुल नहीं पड़ना हैं कि तकनीक मानवीय चेतना, बुद्धिमत्ता और भावनात्मक स्पर्श की जगह ले लेगी। आर्टीफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के इस दौर में यह बहुत सारे लोगों की एक बड़ी चिंता का सवाल है कि क्या टेक्नोलॉजी इंसान को रिप्लेस कर देगी। सच तो यह है कि तकनीक कितनी भी आगे क्यों न बढ़ जाए, वो शिक्षकों की जगह कभी नहीं ले सकती। शिक्षक केवल पढ़ाता ही नहीं है बल्कि वह विद्यार्थी का शारीरिक, मानसिक, आत्मिक, संवेगात्मक और सामाजिक विकास भी करता है। हां, वह शिक्षकों का काम आसान जरूर बना सकती है। तकनीक शिक्षण की प्रक्रिया में मददगार हो सकती है, लेकिन एक शिक्षक की जो सबसे बड़ी जिम्मेदारी है, बच्चों के भीतर छिपे टैलेंट और संभावनाओं को पहचानना और उन्हें प्रेरित करना। यह काम कोई टेक्नोलॉजी नहीं कर सकती। यह ह्यूमन टच के बगैर संभव नहीं। परिवार, समाज और शिक्षक, ये सब मिलकर बच्चे के विकास में मददगार होते हैं। तकनीक इन सबकी मददगार है, इनका विकल्प नहीं। आज सबसे बड़ी जरूरत शिक्षा के जनतंत्रीकरण की है। शिक्षा को एक सीमित विशेषाधिकार दायरे से निकालकर जन-जन तक पहुंचाने की। आज हमारे बच्चों को एक बेहतर कल के लिए तैयार करने की जरूरत है। तकनीक का भविष्य हमारे बच्चों के कल का भविष्य है। तकनीक सिर्फ ज्ञान दिखा सुना सकती है। उसको कार्य करने के लिए बिल्कुल वैसा ही सेटअप चाहिए जैसे के लिए उसको प्रोग्राम किया गया है। अगर कुछ भी बदला तो व्यवहार भी बदलेगा। अगर तकनीक ही सब कुछ होती तो अब तक जिसके भी हाथ में कम्प्यूटर है, लैपटॉप है, मोबाइल है और इंटरनेट से जुड़ा है वो कब का महान बन गया होता। क्योंकि इंटरनेट पर आपके हर सवाल का जवाब मिलेगा। लेकिन उस ज्ञान का कब कैसे कहां प्रयोग करना है। और एक ज्ञान को दूसरे से कैसे जोड़ना है ये सिर्फ एक शिक्षक ही सही से कर सकता है। और अगर आपको लगता है कि किसी दिन टेक्नोलॉजी ये सब कर पाएगी तो उस समय वो सिर्फ शिक्षक का स्थान ही नहीं ले लेगी अपितु वह हर किसी का स्थान ले लेगी। टेक्नोलॉजी एक साधन है, साध्य नहीं, बल्कि हमारे हर कार्य में सहायक और मददगार है। अर्थात हमारे हर काम को आसान और सरल बनाती है।

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रचनाकार

Author

  • डॉ प्रदीप कुमार सिंह

    असिस्टेंट प्रोफेसर-प्राचीन इतिहास.मऊ-उत्तर प्रदेश. Copyright@डॉ प्रदीप कुमार सिंह/इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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