कैसे बताउँ यार

क्या गुजरी थी दिल पर कैसे बताउँ यार।

पीहर को जा रही मेरी पत्नी पहली बार।।

मधुमास का मौसम था शादी मेरी हुई थी।

पत्नी लजा रही थी जैसे छुई मुई थी।

घर स्वर्ग लग रहा था मानो बहार आई।

मैं रोज खा रहा था ससुराल की मिठाई।।

पत्नी में दिख रहा था मुझे सारा संसार।।

पीहर०

ससुराल से खबर जब बुलाने की आई।

समझो जैसे किसी ने सौ बिजलियां गिराई।

सुनकर यह खबर मुझे आने लगी रोवाई।

पर सामने ही खड़े थे पिता और बड़े भाई।

कैसे कैसे मैं रोक पाया अश्रु की बौछार।।

पीहर०

वो दिन भी आ गया जब बुलाने आये साले।

धड़कन बढ़ी जिगर की फिर भी रहे सम्हाले।

पत्नी की जाने की अब तैयारी हो रही थी।

मेरी ये दोनों आंखें नदियों सी रो रही थी।।

मैं बिल्कुल स्वस्थ था मगर लगने लगा बीमार।।

पीहर०

सब घेर के बैठे थे कुछ बात करूं कैसे।

जरा सा मौका मिल गया मुझको जैसे तैसे।

इन रीतियों के आगे दिल मजबूर हो रहा है।

जैसै कि जीव ब्रह्म से अब दूर हो रहा है।

ये छुट्टियां मेरी सारी हो जाएगी बेकार।।

पीहर०

पर देखो मेरे भाई कैसा जमाना आया।

संयुक्त गृह टूट रहे एकल सबको भाया।

ससुराल वाले केवल दामाद देखते हैं।

जेठ ससुर देवर उपेक्षित से रहते हैं।।

पर शेष ज्ञान दीप तुम जलाओ एक बार।।

पीहर ०

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रचनाकार

Author

  • शेषमणि शर्मा 'शेष'

    पिता का नाम- श्री रामनाथ शर्मा, निवास- प्रयागराज, उत्तर प्रदेश। व्यवसाय- शिक्षक, बेसिक शिक्षा परिषद मीरजापुर उत्तर प्रदेश, लेखन विधा- हिन्दी कविता, गज़ल। लोकगीत गायन आकाशवाणी प्रयागराज उत्तर प्रदेश। Copyright@शेषमणि शर्मा 'शेष'/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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