केवल वंचना है!

रोक रोने पर,यहाँ हँसना मना है

कहाँ जाएँ , वर्जना ही वर्जना है !

ठोकरों में दर-ब-दर है भावना

आदमी के सिर चढ़ी है तर्कना

द्वेष मन में , अधर पर शुभकामना है !

शत्रु से बदतर हुआ जाता सगा

दोस्ती का कवच पहने है दग़ा

आस्था, विश्वास केवल वंचना है!

बिक रहा ईमान कितनी शान से

पुत्र मनु के हो रहे हैवान-से

मूल्य-निष्ठा,आन मानो बचपना है !

नगर नकटों का न ऊँची नाक रखिए

बद्धपिंजर विहग हैं क्यों पाँख रखिए

चापलूसी आज सच्ची साधना है!

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रचनाकार

Author

  • डॉ रवीन्द्र उपाध्याय

    प्राचार्य (से.नि.),हिन्दी विभाग,बी.आर.ए.बिहार विश्वविद्यालय,मुजफ्फरपुर copyright@डॉ रवीन्द्र उपाध्याय इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है| इन रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है|

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