कुसुम खिलाना है

गीतों में भर-भर कर /जीवन-राग सुनाना है

जो सोया मुँह फेर समय से /उसे जगाना है।

सत्पथ पर ही चलकर हमको/मंज़िल तक जाना है

बेशक बाधाएँ आयेंगी /पर क्या घबराना है ?

हिम ,आतप ,आँधी,वर्षा/ सबसे याराना है!

दरिया देता नीर,वृक्ष फल/ रवि-शशि ज्योति बिखेरे

विहग चहकते , गीत सुनाते/सबको साँझ-सवेरे

खुला हुआ कुदरत का यह /अनमोल खजाना है!

औरों की ख़ुशियों में ख़ुद की/ख़ुशी खोज पायेंगे

निज-निज दुख का तभी विहँस हम/ विदा-गीत गायेंगे

बाहर-भीतर तिमिर/ देहरी दीप जलाना है।

मुरझाते हैं फूल हवा को/ सौंप गन्ध की थाती

धूसर धरती को धानी कर/ मिटते घन बरसाती

परहित के पुष्पों से जीवन-बाग सजाना है ।

कवि हैं हम जीवन-मूल्यों के/सतत् सजग रखवाले

स्वाभिमान बल, संवेदन धन /प्यार बाँटनेवाले

काँटों की क्यारी में मिल-जुल/ कुसुम खिलाना है।

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रचनाकार

Author

  • डॉ रवीन्द्र उपाध्याय

    प्राचार्य (से.नि.),हिन्दी विभाग,बी.आर.ए.बिहार विश्वविद्यालय,मुजफ्फरपुर copyright@डॉ रवीन्द्र उपाध्याय इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है| इन रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है|

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