कड़कड़ाती ठंड में,जल से फसल सींचते है,
जब कार्य पूर्ण न हो,आराम नही वो करते है ।
मेरा शत शत प्रणाम, है अन्नदाता को,
जो मौसम की हर, मार को सहते है ।।
कभी सूखा झेलते तो,कभी बाढ़ से लड़ते है,
कभी इनके आंसू ,बेदर्दों को न दिखते हैं ।
न फसल के दाम, कभी वाजिब मिलते है,
सदा बिचौलियों के, हाथों ही लूटते है ।।
वो मरे जिएं ये किसको परवाह है,
वो सदा कुर्सी की चिंता करते है ।
कभी उतर कर सिंहासन से देखो,
किसलिए किसान खुदकुशी करते है ।।
ये धरती के वीर पुत्र है,धरती से प्यार करते है,
इसको अपनी मां कहते,इससे अन्न प्राप्त करते है ।
ये परिश्रम से फसल उगा कर,पेट सभी का भरते है,
सबको अन्न खिलाने वाले, क्यूं आखिर भूखे मरते हैं।।
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