धधकते आज शहरों से किनारा कर लिया मैंने
अब अपने गांव में रहकर गुजारा कर लिया मैंने
चमकती सड़के ना देखी न देखी तीव्रतम चाले
अंधेरी गलियों में अपने उजाला कर लिया मैंने
लगायी प्रीति है उनसे जो है दिल में मेरे बैठे
मिलाकर उनसे दिल अपना सहारा कर लिया मैंने
न कोई दिल में चिंता है न कोई मन में है उलझन
अभी तक जिस में उलझा था उसे सुलझा लिया मैंने
चुभे काटे दिलों में जो उसे तो दूर करता हू
सदा मुस्कान कलियों की दिलों में भर लिया मैंने
भाग्य जीवन का ना मेरे कहीं फिर से बिखर जाए
भाव पावन हमेशा ही दिलो का कर लिया मैंने
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