कविता का औघड़

वन के दुःख दर्द अमंगल, सबसे प्रीत निभाऊंँ रे।

मैं कविता का औघड़ साधू, धूनी अलख जगाऊँ रे।।

जिनकी खुशियों को सपनों के चन्द लुटेरे लूट गए

जो जीवन के ऊंँच-नीच में धोखा पाकर टूट गए

उन सबको बाँहों में भर कर अपना मीत बनाऊंँ रे।

मैं कविता का……..

किसकी पलकें बोझिल होंगी, कौन नींद से जागेगा

कौन मुझे अपना समझेगा, कौन दूर से भागेगा

हर दुविधा को छोड़-छाड़ कर मन का गीत सुनाऊँ रे।

मैं कविता का औघड़……..

जिनको गर्व रूप-दौलत का, उनसे नहीं कोई नाता

जो निश्छल मन लेकर आए, वो अपने मन को भाता

मन-गंगा के पावन जल में, डुबकी रोज लगाऊँ रे।

मैं कविता का औघड़………

क्या छूटा क्या मिला जगत में, इसका कोई खेद नहीं

जीवन की श्मशान भूमि में शत्रु-मित्र का भेद नहीं

स्वप्न अधूरे मुण्डमाल सा धारण कर इतराऊँ रे।

मैं कविता का औघड़………

जो सुख-दुःख में रहे बराबर, वो ‘असीम’ घबराए क्या

जो जाने आनन्द मृत्यु का, उसको काल डराए क्या

लेकर महाकाल की अनुमति, माथे भस्म चढ़ाऊँ रे।

मैं कविता का औघड़………

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रचनाकार

Author

  • शैलेन्द्र 'असीम'

    पूरा नाम : शैलेन्द्र कुमार पाण्डेय उपाख्य : असीम पता : पाण्डेय निवास रोहुआ मछरगावां, कुशीनगर उत्तर प्रदेश पिन - 274149 मो. न. 7007947309 Copyright@शैलेन्द्र 'असीम'/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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