कलम हमारी बोली

कलम हमारी बोली कविवर,

मुझे ये क्यूं नही बताते हो ।

एक वर्ष में तीन दिवस क्यूं ?

तुम देशभक्ति जगाते हो ।।

इस वतन पे मिटने वाले,

कभी तिथियां नही देखते थे ।

वो वतन की पूजा करते थे,

वो देश की माला फेरते थे ।।

तीन दिवस याद करके,

फिर सम्पूर्ण वर्ष भुलाते हो ।।

कलम हमारी बोली कविवर,

मुझे ये क्यूं नही बताते हो।।

सारे श्रृंगार तजे तन के,

शिशु को पीठ पर बांधा था ।

देख के रानी का पराक्रम,

अंग्रेज तो थर थर कांपा था ।।

साथ में झलकारी बाई की,

गाथा क्यूं नही गाते हो,,

कलम हमारी बोली कविवर,

मुझे ये क्यूं नही बताते हो ।

स्वप्न सजाते है जब लोग,

अरमानों की डोली का,

आजाद खेलने लगा खेल,

मौत से आंख मिचौली का ।

कैसे आजादी पाई हमने,

तुम ये संघर्ष नही बतलाते हो ।।

कलम हमारी बोली कविवर,

मुझे ये क्यूं नही बताते हो ।

अरमान शहीदों का इतना था,

सब हंसी खुशी से साथ रहे ।

देश तरक्की करता जाए,

मन में न द्वेष के भाव रहें ।।

फिर मजहब की चिंगारी से,

क्यूं वतन मेरा झुलसाते हो।।

कलम हमारी बोली कविवर,

मुझे ये क्यूं नही बताते हो ।

इतना स्वप्न देखा वीरों ने,

देश मेरा खुशहाल रहे ।

कोई रोटी को न तरसे,

कोई भूख से न तड़पे ।।

अमीर गरीब की खाई को,

क्यूं प्रतिदिन और बढ़ाते हो ?

कलम हमारी बोली कविवर,

मुझे ये क्यूं नही बताते हो ?

एक वर्ष में तीन दिवस क्यूं

तुम देश भक्ति जगाते हो ।।

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रचनाकार

Author

  • अनूप अंबर

    नाम : अनूप अंबर जन्म तिथि:01जनवरी 1991 पिता का नाम:राजेश कुमार पता: फर्रुखाबाद उत्तर प्रदेशइनके नौ साझा संकलन प्रकाशित हो चुके हैं, पच्चीस अर्थलोगी प्रकाशित हो चुकी है, विभिन्न मंचों से 150 से अधिक सम्मान पत्र प्राप्त है, इनकी विभिन्न रचनाएं पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है,ये कई साहित्य पटलों पर सक्रिय है ।। Copyright@अनूप अंबर / इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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