कभी मिलो तुम

कभी मिलो तुम,
जहाँ पर “मैं” न हो l
हो सिर्फ “मय” आंखो की,
जहाँ शेह और मात की चाह न हो l

कभी मिलो, सिर्फ मेरे होने के लिए
कभी मिलो सिर्फ मुझसे मिलने के लिए l
कभी मिलो, कि इंतज़ार ख़त्म हो जाये,
कभी मिलो की प्यास थम सी जाये ll

कभी मिलो, कि फिर मिलना न हो l
कभी मिलो, कि संभलना न हो l
कभी मिलो, एक हो जाने के लिए ,
कभी मिलो मुझे रह जाने के लिए ll

कभी मिलो, जैसे मिलती है किरणें, बदन से l
कभी मिलों,जैसे मिलती हैं नजरें सनम से l
कभी मिलो, जैसे धड़कनें मिलती हैं हृदय से l
कभी मिलो, जैसे नदियाँ मिलती हैं समुद्र से l

कभी मिलो तुम,
जहाँ कोई मिलने की चाह न हो l
कभी मिलो तुम ,
जहाँ हम और आप न हों l

Facebook
WhatsApp
Twitter
LinkedIn
Pinterest

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

रचनाकार

Author

  • आलोक सिंह "गुमशुदा"

    शिक्षा- M.Tech. (गोल्ड मेडलिस्ट) नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी कुरुक्षेत्र, हरियाणा l संप्रति-आकाशवाणी रायबरेली (उ.प्र.) में अभियांत्रिकी सहायक के पद पर कार्यरत l साहित्यिक गतिविधियाँ- कई कवितायें व कहानियाँ विभिन्न पत्र पत्रिकाओं कैसे मशाल , रेलनामा , काव्य दर्पण , साहित्यिक अर्पण ,फुलवारी ,नारी प्रकाशन , अर्णव प्रकाशन इत्यादि में प्रकाशित l कई ऑनलाइन प्लेटफार्म पर एकल और साझा काव्यपाठ l आकाशवाणी और दूरदर्शन से भी लाइव काव्यपाठ l सम्मान- नराकास शिमला द्वारा विभिन्न प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत व सम्मानित l अर्णव प्रकाशन से "काव्य श्री अर्णव सम्मान" से सम्मानित l विशेष- "साहित्यिक हस्ताक्षर" चैनल के नाम से यूट्यूब चैनल , जिसमें स्वरचित कविताएँ, और विभिन्न रचनाकारों की रचनाओं पर आधारित "कलम के सिपाही" जैसे कार्यक्रम और साहित्यिक पुस्तकों की समीक्षा प्रस्तुत की जाती है l पत्राचार का पता- आलोक सिंह C- 20 दूरदर्शन कॉलोनी विराजखण्ड लखनऊ, उत्तर प्रदेश Copyright@आलोक सिंह "गुमशुदा"/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

Total View
error: Content is protected !!