कभी मिलो तुम,
जहाँ पर “मैं” न हो l
हो सिर्फ “मय” आंखो की,
जहाँ शेह और मात की चाह न हो l
कभी मिलो, सिर्फ मेरे होने के लिए
कभी मिलो सिर्फ मुझसे मिलने के लिए l
कभी मिलो, कि इंतज़ार ख़त्म हो जाये,
कभी मिलो की प्यास थम सी जाये ll
कभी मिलो, कि फिर मिलना न हो l
कभी मिलो, कि संभलना न हो l
कभी मिलो, एक हो जाने के लिए ,
कभी मिलो मुझे रह जाने के लिए ll
कभी मिलो, जैसे मिलती है किरणें, बदन से l
कभी मिलों,जैसे मिलती हैं नजरें सनम से l
कभी मिलो, जैसे धड़कनें मिलती हैं हृदय से l
कभी मिलो, जैसे नदियाँ मिलती हैं समुद्र से l
कभी मिलो तुम,
जहाँ कोई मिलने की चाह न हो l
कभी मिलो तुम ,
जहाँ हम और आप न हों l
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