कब तक पिंजड़े में तड़पते रहेंगे,
कब इन पंखों को हम फैलाएंगे ।
हम स्वतंत्र नभ पर विचरण करने वाले,
अब इस पिंजरे में न रह पाएंगे।।
मुझको भी स्तंत्रता प्यारी है ।
छोड़ दो पिजड़े से मुझको,
बस इतनी सी अरज हमारी है ।।
एक दिन सूरज ढल जायेगा,
पंछी पिंजरे से उड़ जायेगा ।
सब कुछ यहीं पर रह जायेगा,
कुछ भी तो साथ न जायेगा ।।
देखे जाने की संख्या : 334