वो इशारा कर रहा था और कुछ।
अंत में निकला तमाशा और कुछ।
देखिए हमको यहांँ पर क्या मिला,
चाहते थे हम भी पाना और कुछ।
प्रेम से मैंने उसे तुम कह दिया,
अर्थ सबने ही निकाला और कुछ।
इश्क़ का इज़हार करना था मगर,
अब ज़ुबाँ पर है फ़साना और कुछ।
लो चला दरिया समन्दर की तरफ़,
नाम हो जायेगा उसका और कुछ।
है मुहब्बत की भला किसको पड़ी,
अब दिवानों का इरादा और कुछ।
बस दिलासा ही बचा था जेब में,
और बेटा चाहता था और कुछ।
ज़िन्दगी आसांँ लगे यूँ तो मगर,
है हक़ीक़त का तक़ाज़ा और कुछ।
जी सकूँगा मैं ‘अकेला’ भी सुनो,
पर करूँ क्या है तमन्ना और कुछ।
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