अहं जब होकर तरल
याद आती है तुम्हारी
ओ प्रिये!
जब कभी लगता है घिरने
दिन में ही आँखों के आगे
तिमिर तब-तब
याद आती है तुम्हारी
ओ प्रिये!
स्वप्न कोई मधुर,मोहक
टूट जाता है अचानक
याद आती है तुम्हारी
ओ प्रिये!
गोधूली में नीड़ को
पूरब दिशा से
लौटता अति क्षिप्र गति से
देखता हूँ विहग कोई
याद आती है तुम्हारी
ओ प्रिये !
कोई जब आता नहीं
मुझ तक निविड़ एकान्त में
याद आती है तुम्हारी
ओ प्रिये!
जब कभी सच्चे हृदय से
ढूँढता हूँ स्वयं को ही
याद आती है तुम्हारी
ओ प्रिये!
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