ओ प्रिये !

अहं जब होकर तरल

है ढुलक जाता अश्रु बनकर

याद आती है तुम्हारी

ओ प्रिये!

जब कभी लगता है घिरने

दिन में ही आँखों के आगे

तिमिर तब-तब

याद आती है तुम्हारी

ओ प्रिये!

स्वप्न कोई मधुर,मोहक

टूट जाता है अचानक

याद आती है तुम्हारी

ओ प्रिये!

गोधूली में नीड़ को

पूरब दिशा से

लौटता अति क्षिप्र गति से

देखता हूँ विहग कोई

याद आती है तुम्हारी

ओ प्रिये !

कोई जब आता नहीं

मुझ तक निविड़ एकान्त में

याद आती है तुम्हारी

ओ प्रिये!

जब कभी सच्चे हृदय से

ढूँढता हूँ स्वयं को ही

याद आती है तुम्हारी

ओ प्रिये!

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रचनाकार

Author

  • डॉ रवीन्द्र उपाध्याय

    प्राचार्य (से.नि.),हिन्दी विभाग,बी.आर.ए.बिहार विश्वविद्यालय,मुजफ्फरपुर copyright@डॉ रवीन्द्र उपाध्याय इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है| इन रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है|

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