वह नदी का किनारा,वह शाम लिखना
एक पाती फिर हमारे नाम लिखना !
अभी तो आग़ाज़ को दें पुख़्तगी हम
अभी से क्या बैठकर अंजाम लिखना!
मंज़िलों की जुस्तजू में जो क़दम हैं
राह में उनको नहीं आराम, लिखना।
जिसकी ख़ातिर वफ़ा भी इक लफ़्ज़ भर
उसे कैसा दर्द का पैगाम लिखना !
बिकने नहीं आया हमें बाज़ार में
दिल के हाथों बिक गये बे-दाम लिखना।
ज़िन्दगी का कारवाँ थमता कहाँ है?
इस सफ़र का नहीं पूर्णविराम, लिखना ।
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