एक ताज़ा ग़ज़ल -यादों के आईनों में रह जाते हैं

यादों के आईनों में रह जाते हैं ।

जाने वाले आंखों में रह जाते हैं ।

ख़ुशबू बन कर उड़ते हैं फिर बाग़ों में ।

तितली के पर फूलों में रह जाते हैं ।

बादल आंखों को छलका कर चल देते ।

नन्हे मोती झीलों में रह जाते हैं ।

झूठी बातें सारी बाहर आ जातीं ।

सच्चे किस्से महलों में रह जाते हैं ।

शायर मर कर भी जीते हैं दुनिया में ।

उनके चेहरे ग़ज़लों में रह जाते हैं ।

कितनी बूंदें सागर बन जाया करतीं ।

कितने सागर बूंदों में रह जाते हैं ।

बच्चे चल देते मुस्तक़बिल की जानिब ।

बचपन उनके गलियों में रह जाते हैं ।

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रचनाकार

Author

  • कमलेश श्रीवास्तव

    कमलेश श्रीवास्तव पिता-श्री शिवचरण श्रीवास्तव माता-श्रीमती गीता देवी श्रीवास्तव जन्म तिथि- 14 अगस्त 1960,श्री कृष्ण जन्माष्टमी जन्म स्थान- सिरोज, जिला विदिशा, म.प्र. शिक्षा-एम.एससी.(रसायन शास्त्र) साहित्यिक गतिविधियाँ- आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से रचनाओं का प्रसारण विभिन्न पत्र एवं पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन हिन्दी उर्दू काव्य मंचों पर काव्य-पाठ| कृतियाँ/प्रकाशन- नवगीत संग्रह समांतर-3, गज़ल संग्रह "वक्त के सैलाब में" एवं गज़ल संग्रह "क्या मुश्किल है" का प्रकाशन सम्प्रति- शाखा प्रबंधक एम.पी. वेअर हाऊसिंग एण्ड लॉजिस्टिक्स कार्पोरेशन शाखा पचौरी, जिला-रायगढ़ में शाखा प्रबंधक के रूप में पदस्थापित| संपर्क सूत्र- 269"धवल निधि" बालाजी नगर,पचौर, जिला- रायगढ़, म. प्र.,पचौर 465683 मो-09425084542 email-kamlesh14860@gmail.comCopyright@कमलेश श्रीवास्तव / इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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