एक चाँद रिश्ते हज़ार रखता है
कभी एक ही इंसान से
तो कभी
कभी हम उससे रिश्ता जोड़ते हैं
तो कभी वो हममें रिश्ता जीता है
बचपन में ये मेरा मामा बना फिरता था
जवानी की दहलीज में
मेरी माशूका का चेहरा खुद में रखता था
कभी बाबू की पढाई में …
मेरे लिए गोल रोटी सा हो जाता था
तो कभी देर रात घर से निकलता तो …
मेरा हमसफ़र बन जाता था
हाँ…..
एक चाँद रिश्ते हज़ारो रखता है……
कभी ये चाँद अपशगुन लगवाता है
तो कभी करवा चौथ में …
लम्बी उम्र का वरदान भी दे जाता है
कभी गुलजार की नज़्मों में जीता …
तो कभी अमावस की रात में
खुद में ही सिमट जाता है……
कभी अनजानी राहों में
रातों के अंधेरों में
मुसाफिरों को रास्ता दिखलाता….
तो कभी अन्तः मन के अधेरों से
हमको निकलवाता है
तो कभी दोस्त बन …खिड़की से झांकता
और
मेरे खामोश लफ्जों को सुनने आ जाता है
कभी कभी हमसे मिलने उत्सुकता में
सूरज से खुद को छुपाते हुए
जल्द ही
आसमान के आंगन में दिख जाता है….
हाँ…..
एक चाँद रिश्ते हज़ारो रखता है……
जब कभी रात में छत पर हुआ करते हैं
शांत बैठ या लेट कर
चन्द्रमा से गुफ्तुगू किया करते हैं
तो कई चेहरे बना कर
हमारे सवालों का उत्तर दिया करता है
हो चाहे कितना उदास …या खुश
हमेशा अपने चेहरे का
एक हिस्सा दिखा दिया करता है
और जब कभी
मेरे सवालों से आहत हो जाता है
तो चेहरा मोड़ कर
आँसू बहा दिया करता है
और फिर अगले ही पल ….
नजरे मिलाकर ….
प्यार की बूंदों को मोती बना कर
मुस्कुरा दिया करता है …
पर अब कहाँ मिलपाता हूँ
ज़िम्मेदारियों की उठापटक में
रिश्ते कहाँ निभा पाता हूँ
फिर भी वो रिश्ते निभाता है
ये जानकर की समय के समंदर में
लम्हों की जागीर कम बची है
ख्वाहिशों की चाह में
ज़िंदगी उलझ सी गयी है
वो आता है
आज भी खिड़की से झाकने
कभी बचपन में बिताये
लम्हों का हिसाब मांगने
मेरे पास कोई उत्तर भी नहीं अब तो
इसलिए
टांग दिया है पर्दा
खिड़की के सामने
ये खिड़की सिर्फ खिड़की तो नहीं है
एक रास्ता है
रिश्तों को जीने का शायद,
अब कई दिनों से वो नहीं दिखता मुझको
कल भी निकला था मैं ढूढ़ने उसको
अपने अंदर के जुगनुओं की रौशनी में….
शायद नाराज हो गया है आज कल…
या हो गयी है उसकी नजरे कमज़ोर
जैसे हमारी होगयी हैं ….
ये खुद के हाथो से प्रदुषण फैलाकर …
हाँ…..
एक चाँद रिश्ते हज़ारों रखता है……