आज अपने गले से लगा लो मुझे
देखिए रुत तो अब फागुनी आ गई
मेघ की आज बारिश भले कम हुई
रंग मे घुलती बारिश तो फिर आ गई
भाव का रंग दिल पर तो ऐसे मलो
जिसकी रंगत कभी भी न फीकी पड़े
प्रेम का रंग ऐसा चढ़े तन वदन
जितना डूबो ओ उतनी ही चढती रहे
फिर तो खिलती रहे रंग में डूब कर
मन के भावो में ही डूबती तू रहे
पर्व का भाव दिल में उमंगों का है
भाव में डूब कर भाव भरता रहे
भाव में डूबकर रंग ऐसा भरो
प्रेम हरदम शिखर पर ही चढ़ता रहे
हो किसी से न शिकवा शिकायत कोई
भूलकर सब गिला दिल ये मिलता रहे
प्रेम में डूब आखे झलक जाएगी
प्रेम का रंग दिल में है जिसके चढ़ा
ओ तो गाता रहेगा सदा नगमे को
डूबकर प्रेम की राग में जो गढा
आज रंग दे तू मुझको उसी रंग में
तेरा रंग मुझ पे है आज जैसा चढ़ा
ऐसी खिलती रहे रंग में डूब कर
कि लगे फिर से रितु फागुनी आ गई
आज अपने गले से लगा लो मुझे
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